Monday, December 13, 2010

लहरों ने बचा लिया


लहरों ने मुझे डूबने नहीं दिया

सबसे पहले

मैंने अपने को

लहरों में पाया

पहली-पहली बार लहरों ने मुझे

एक किनारे फ़ेका, कुछ देर रहने दिया

फ़िर लहरों ने वापस मुझे

अपने में ले लिया,

मिला लिया।


दूसरी बार लहरों ने मुझे

एक दूसरे किनारे फ़ेका

जब तक मैं अपने को किनारे में पाता

इससे पहले उसने मुझे वापस अपने में मिला लिया।


अंतिम बार

मैं और लहरें साथ थे

मेरी इच्छा थी

किनारे को पकडने की

पर किनारे को यह मंजूर न था

मैं फ़िर अपने को

लहरों में पाता हूँ

और बहे चला जाता हूँ

इस आस में

कि किनारा मुझे पसंद करे

मैं किनारें को पसंद करुँ।

· ज़मीर

18 comments:

  1. 'koolon ne jab lahron se alingan manga
    aaj nahi kal-kal kahti wo chali gayeen'
    sunder rachna..

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  2. अभी तो डोली ती नैया, अभी तो खोली थी नैया,
    किनारे पर हिम्मत हारे,अभी मझधार बाकी है।
    प्यार के काटों में जो दर्द,अभी तो सारा बाकी है।
    भावनाओं की काल्पनिक उडान अच्छी लगी। लिखते रहो भाई-अंत में बस यही कहूगा-
    खोल दो क्षितिज,मैं भी देख लूं उस पार क्या है,
    जा रहे हो जिस दिशा में,उस दिशा का छोर क्या है।
    बधाई।

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  3. बहुत पसन्द आया
    हमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
    बहुत देर से पहुँच पाया ..............माफी चाहता हूँ..

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  4. एक दिन किनारा ज़रूर मिलेगा यही लहरें ले कर आयेंगी.

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  5. ज़मीर जी,
    जीवन के लहरों के साथ भी कुछ ऐसी ही अठखेलियाँ करते हुए उम्र गुज़रती जाती है !
    बहुत अच्छी कविता लगी !
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

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  6. जो किनारों को अपना लेते अहिं वो उसके ख़ास हो जाते हैं ... जैसे की लहरें ... बहुत खूब लिखा है

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  7. जमीर भाई, आप मानें या न मानें पर आपकी लेखनी में एक जबरदस्‍त रवानी है, जो पाठक को अपनी ओर खीयंती है। बहुत बहुत बधाई।

    ---------
    आपका सुनहरा भविष्‍यफल, सिर्फ आपके लिए।
    खूबसूरत क्लियोपेट्रा के बारे में आप क्‍या जानते हैं?

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  8. बहोत ही अच्छा लिखा है जमीर जी आपने ..............

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  9. बहुत सुन्दर लगी आपकी रचना,शुभकामनायें..

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  10. सुन्दर कविता!
    नव वर्ष(2011) की शुभकामनाएँ !

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  11. सर्वस्तरतु दुर्गाणि सर्वो भद्राणि पश्यतु।
    सर्वः कामानवाप्नोतु सर्वः सर्वत्र नन्दतु॥
    सब लोग कठिनाइयों को पार करें। सब लोग कल्याण को देखें। सब लोग अपनी इच्छित वस्तुओं को प्राप्त करें। सब लोग सर्वत्र आनन्दित हों
    सर्वSपि सुखिनः संतु सर्वे संतु निरामयाः।
    सर्वे भद्राणि पश्यंतु मा कश्चिद्‌ दुःखभाग्भवेत्‌॥
    सभी सुखी हों। सब नीरोग हों। सब मंगलों का दर्शन करें। कोई भी दुखी न हो।
    बहुत अच्छी प्रस्तुति। नव वर्ष 2011 की हार्दिक शुभकामनाएं!

    सदाचार - मंगलकामना!

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  12. आपको नव वर्ष 2011 की हार्दिक शुभकामनायें...स्वीकार करें
    बहुत खूब ...अंदाज -ए- वयां पसंद आया

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  13. आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा अति उत्तम असा लगता है की आपके हर शब्द में कुछ है | जो मन के भीतर तक चला जाता है |
    कभी आप को फुर्सत मिले तो मेरे दरवाजे पे आये और अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाए |
    http://vangaydinesh.blogspot.com/
    धन्यवाद

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  14. जमीर भाई,
    आपका मेरे पोस्ट 'अपनी पीढी को शब्द देना आसान काम नही है" पर आना अच्छा लगा । भाई, आप और शमीम जी तो ब्रेक लगा कर बैठ से गए हो । सुझाव है सृजनरत रहो । आपके पूरे परिवार को नव वर्ष की अशेष शुभकामनाएं.।.

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  15. लिखना क्यूँ बंद कर दिय़ा??

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