सबसे पहले
मैंने अपने को
लहरों में पाया
पहली-पहली बार लहरों ने मुझे
एक किनारे फ़ेका, कुछ देर रहने दिया
फ़िर लहरों ने वापस मुझे
अपने में ले लिया,
मिला लिया।
दूसरी बार लहरों ने मुझे
एक दूसरे किनारे फ़ेका
जब तक मैं अपने को किनारे में पाता
इससे पहले उसने मुझे वापस अपने में मिला लिया।
अंतिम बार
मैं और लहरें साथ थे
मेरी इच्छा थी
किनारे को पकडने की
पर किनारे को यह मंजूर न था
मैं फ़िर अपने को
लहरों में पाता हूँ
और बहे चला जाता हूँ
इस आस में
कि किनारा मुझे पसंद करे
मैं किनारें को पसंद करुँ।
· ज़मीर
'koolon ne jab lahron se alingan manga
ReplyDeleteaaj nahi kal-kal kahti wo chali gayeen'
sunder rachna..
अभी तो डोली ती नैया, अभी तो खोली थी नैया,
ReplyDeleteकिनारे पर हिम्मत हारे,अभी मझधार बाकी है।
प्यार के काटों में जो दर्द,अभी तो सारा बाकी है।
भावनाओं की काल्पनिक उडान अच्छी लगी। लिखते रहो भाई-अंत में बस यही कहूगा-
खोल दो क्षितिज,मैं भी देख लूं उस पार क्या है,
जा रहे हो जिस दिशा में,उस दिशा का छोर क्या है।
बधाई।
बहुत पसन्द आया
ReplyDeleteहमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
बहुत देर से पहुँच पाया ..............माफी चाहता हूँ..
एक दिन किनारा ज़रूर मिलेगा यही लहरें ले कर आयेंगी.
ReplyDeleteज़मीर जी,
ReplyDeleteजीवन के लहरों के साथ भी कुछ ऐसी ही अठखेलियाँ करते हुए उम्र गुज़रती जाती है !
बहुत अच्छी कविता लगी !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
जो किनारों को अपना लेते अहिं वो उसके ख़ास हो जाते हैं ... जैसे की लहरें ... बहुत खूब लिखा है
ReplyDeleteजमीर भाई, आप मानें या न मानें पर आपकी लेखनी में एक जबरदस्त रवानी है, जो पाठक को अपनी ओर खीयंती है। बहुत बहुत बधाई।
ReplyDelete---------
आपका सुनहरा भविष्यफल, सिर्फ आपके लिए।
खूबसूरत क्लियोपेट्रा के बारे में आप क्या जानते हैं?
बहोत ही अच्छा लिखा है जमीर जी आपने ..............
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लगी आपकी रचना,शुभकामनायें..
ReplyDeleteसुन्दर कविता!
ReplyDeleteनव वर्ष(2011) की शुभकामनाएँ !
सर्वस्तरतु दुर्गाणि सर्वो भद्राणि पश्यतु।
ReplyDeleteसर्वः कामानवाप्नोतु सर्वः सर्वत्र नन्दतु॥
सब लोग कठिनाइयों को पार करें। सब लोग कल्याण को देखें। सब लोग अपनी इच्छित वस्तुओं को प्राप्त करें। सब लोग सर्वत्र आनन्दित हों
सर्वSपि सुखिनः संतु सर्वे संतु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यंतु मा कश्चिद् दुःखभाग्भवेत्॥
सभी सुखी हों। सब नीरोग हों। सब मंगलों का दर्शन करें। कोई भी दुखी न हो।
बहुत अच्छी प्रस्तुति। नव वर्ष 2011 की हार्दिक शुभकामनाएं!
सदाचार - मंगलकामना!
आपको नव वर्ष 2011 की हार्दिक शुभकामनायें...स्वीकार करें
ReplyDeleteबहुत खूब ...अंदाज -ए- वयां पसंद आया
आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा अति उत्तम असा लगता है की आपके हर शब्द में कुछ है | जो मन के भीतर तक चला जाता है |
ReplyDeleteकभी आप को फुर्सत मिले तो मेरे दरवाजे पे आये और अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाए |
http://vangaydinesh.blogspot.com/
धन्यवाद
बेहतरीन कविता वाह!
ReplyDeleteVivek Jain vivj2000.blogspot.com
sunder kavita............
ReplyDeleteजमीर भाई,
ReplyDeleteआपका मेरे पोस्ट 'अपनी पीढी को शब्द देना आसान काम नही है" पर आना अच्छा लगा । भाई, आप और शमीम जी तो ब्रेक लगा कर बैठ से गए हो । सुझाव है सृजनरत रहो । आपके पूरे परिवार को नव वर्ष की अशेष शुभकामनाएं.।.
लिखना क्यूँ बंद कर दिय़ा??
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