“ जब मैं यह सोचता हूं, विचार करता हूं-
मेरी आधी ज़िन्दगी में मेरी कितनी ज्योति इस अंधकार जगत, और इसकी
समस्या में बर्बाद हुई,
पर मेरी एक प्रतिभा(कविताई) मरने से छुप गई है.
उसी प्रतिभा ने मुझ असहाय को सहारा दिया
हालांकि मेरी आत्मा झुक जाती है भगवान के चरणों में”,
आजकल लोग मुझे फ़टकरते है –“क्या दिन में भगवान ही काम आते है, प्रकाश
नहीं”.
मैं खुश होकर धैर्य के साथ अपनी संतुष्टि ज़ाहिर करता हूं,
और जवाब मिलता है –“भगवान को न मनुष्य के कार्य चाहिए न उसकी स्वयं की
दी हुई भेंट”.
भगवान उसी को चाहता है,
उसी को प्यार करता है जो उसकी सत्ता को स्वीकरता है,
जो उसके अस्तीत्व को स्वीकरता है वही उसका सच्चा सेवक है.
उसका(भगवान) दर्जा बहुत ऊंचा है, उच्चतम है.
हज़ारों उसकी आज्ञा के लिए इधर उधर भटकते रहते हैं.
यहां तक की जल थल को आराम नहीं है
“ भगवान उसी को देता है – जो या तो खडा है या इंतजार कर रहा है”.
- अनुवाद – ज़मीर
Jamir Bhai,
ReplyDeleteIn this context,Please note the followings;-
1. Remember my brother that this body is the temple of living God.
2 The best way to love God is to love mankind.
Thaks for inculcating a creative idea.Carry on.
बहुत बढ़िया काम है ... लगे रहो !
ReplyDeleteप्रम सागर जी और इन्द्रनील सर आपका बहुत बहुत धन्यवाद.
ReplyDeleteअच्छी कविता का अच्छा अनुवाद
ReplyDeleteसंगीता जी आपका धन्यवाद.
ReplyDeleteज़मीर जी,
ReplyDelete`भगवान उसी को देता है जो या तो खड़ा है या इंतज़ार कर रहा है ` एकदम सच्ची बात है !अनुवाद पढ़कर अच्छा लगा !
शुभकामनाएं ,
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
मेरी सोच कुछ अलग है ... भगवान् उन्ही को देता है जो दूसरों को भी देना जानते हैं ...
ReplyDeleteआपके विचार जानना अछा लगा ..
अच्छी प्रस्तुति. बरकरार रखें.
ReplyDeleteबहुत अच्छा प्रयास है। ज़ारी रखें।
ReplyDeleteचंद लाइनों में कितनी भावनाएं समेट दी है आपने, दिल को छू गई❣️thanks for sharing
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